मशीन के मानवीय और मानव के दानवीय अवतार का युग

गोआ में सैट 2031 की कहानी कहती डिज्‍नी हॉटस्‍टार की नई विज्ञान फिक्‍शन यानी साईफाई वेबसिरीज ओके, कंम्‍प्‍यूटर आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के साथ-साथ पर्यावरणीय परिवर्तनों, चुनौतियों, प्रगति और आने वाले कल की संभावनाओं, आशंकाओं का कोलाज है।

मशीन ने मनुष्य को जितना सुविधा दी है, उतना ही मनुष्य को बेरोजगार भी बनाया, शायद यही वजह थी कि महात्मा गांधी मशीनों के बहुत पक्ष में नहीं थे। उनका मानना था कि मशीनों से सभी के समय और मेहनत में बचत होनी चाहिए, लेकिन वे नहीं चाहते थे कि मनुष्‍य मशीनों का दास बन कर रह जाए अथवा वह अपनी पहचान ही खो दे।

मशीन और मनुष्य का यह संबंध कई-कई रूप बदलकर कला, साहित्य और सिनेमा में आता रहा, मनुष्य मशीन के निर्माण की इस प्रक्रिया में लगातार इस कोशिश में रहा है कि वह असंभव को संभव बनाता चला जाए और मनुष्य के बहुत से मशीनी आविष्कारों से यह संभव भी हुआ है जैसा पहले कदापि कल्पना में भी संभव नहीं था। चाहे वह हवाई जहाज की कल्पना हो, चाहे वह सिनेमा की कल्पना हो। रोबोट की कल्पना पिछले कुछ समय में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस यानी एआई का पूरा इस्तेमाल मनुष्य और मशीन के संबंधों का एक नया ही आयाम है। इसी नए आयाम को आनंद गांधी ने इस सीरीज ‘ओके, कंप्यूटर’ में भविष्य में जाकर सोचने, समझने, देखने का प्रयास किया है। यंत्र को लेकर आधुनिक भारत में महात्‍मा गांधी से आनंद गांधी तक आना बेहद दिलचस्‍प है।

इसके लेखक आनंद गांधी को हम ‘शिप ऑफ थिसियस’ के लेखक, निर्देशक और ‘तुम्‍बाड़’ के लेखक और क्रिएटिव प्रोड्यूसर के रूप में जानते हैं, उससे पहले वे एकता कपूर की क प्रथमाक्षर वाली सीरियल रेंज के शुरूआती लेखक के रूप में भी पहचान सकते हैं।

रोबोट के भावनाशील हो जाने को लेकर सिनेमा में कई कहानियां आ चुकी हैं, इस विषय में हॉलीवुड की चर्चा बहुत होती रही है, हम भारतीय सिनेमा तक ही बात करें तो ज्‍यादा बेहतर है, उसमें से एक बड़ी कहानी रजनीकांत के साथ भी हमारे बीच आई, एस शंकर निर्देशित एथिरन फ्रेंचाइज ‘रोबोट’ और उसका सीक्वल ‘2.0’ हुमनोइड रोबोट की विज्ञान कथाएं थी। 2011 में बनी, शाहरुख खान अभिनीत अनुभव सिन्हा निर्देशित ‘रा-वन’ कॉन्सेप्ट के लिहाज से बहुत खास फ़िल्म थी। प्रत्यक्ष रूप से तो नहीं, पर जॉनर की दृष्टि से वह भी आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस की फ़िल्म थी।  इस विषय पर हिंदी टीवी की दुनिया में एक साधारण सी कोशिश लाइफ ओके पर आया सीरियल ‘’हमारी बहू -‘रजनीकांत’ था।

और उसी आयाम को इस सीरीज से आनंद गांधी एक अलग स्तर पर लेकर जाते हैं, यहां रोबोट किसी पासवर्ड से नियंत्रित होना छोड़ देता है, स्वयं अपना पासवर्ड जेनरेट करना शुरू कर देता है, अपनी भावनाओं से चलने लगता है, मनुष्य के आदेश मानने से इंकार तो करता ही है। एक समय ऐसा भी आता है, जब वह बनाने वाले मनुष्यों, नियंत्रित करने वाले मनुष्यों की इच्छा से सर्वथा विपरीत सर्वथा अकल्पनीय रूप से अपने आगे के जीवन को स्टैंड अप कॉमेडियन के रूप में जीने का निर्णय लेता है।

आनंद गांधी

उत्‍तर एकता कपूर, आनंद गांधी 2.0 को इस तरह से देखता हूं कि वे दर्शनशास्त्र के विद्यार्थी के रूप में जो एक अलग समझ के साथ कलाओं में आए हैं, उसका व्यवहारिक अनुप्रयोग बहुत खुलकर कर रहे हैं और दार्शनिक प्रश्नों को जिस सहजता के साथ कहानी में गूंथते हैं, अन्यत्र प्रायः दुर्लभ है। दार्शनिक बोझिलता से कहानी कहने को बचाए रखते हुए दार्शनिक प्रश्नों को कथा की अंतरधारा बना देते हैं, यह उनकी बड़ी ताकत है।

चीन, मिस्र, यूनान और भारत की प्राचीन सभ्यताओं में स्वचालित यंत्रों का उल्लेख मिलता है।  खास तौर पर, भारतीय परंपरा में 11वीं सदी में भोज की संस्कृत रचना ‘समरांगण सूत्रधार’ के 31 वें अध्याय यंत्र विधान में स्वचालित यंत्रों के तहत लकड़ी के विमान के साथ दरबान, सिपाही आदि के वर्णनों में यंत्रमानव के रूप में रोबोट की झलक महसूस की जा सकती है।

चीन के एक वैज्ञानिक ने 10 -11वीं सदी में ऐसे स्वचालित यंत्र का निर्माण कर लिया था, जिसे कुछ कुछ रोबोट का आरंभिक संस्करण माना जा सकता है। यूरोपीय पुनर्जागरण और उसके बाद सत्रहवीं-अठारहवीं सदी में वैज्ञानिकों ने इस पर अधिक गम्भीरता से काम करना शुरू किया। कमाल की बात है कि रोबोट शब्द का पहला इस्तेमाल 1920 के आसपास एक चेक नाटककार कैरेल चैपक ने अपने नाटक में किया। हालांकि स्लोवाकिया की भाषा में इससे मिलता-जुलता शब्द ‘रोबोटा’ जबरदस्ती श्रम (फोर्स्ड लेबर) के लिए प्रचलित था।

 

इजराइल की हिब्रू यूनिवर्सिटी में प्रोफेसर, इतिहासकार युवाल नोआ हरारी पिछले कुछ समय में अपनी इतिहास विषयक किताबों ‘सेपियंस : ए ब्रीफ हिस्‍ट्री ऑफ ह्यूमन काइंड’ और ‘होमो डेयस : ए ब्रीफ हिस्‍ट्री ऑफ टूमारो’ से बेहद और दुनिया भर में चर्चा में रहे हैं, और विज्ञान के साथ इतिहास को जिस रूप में वह मिलाकर देखते हैं, वह इतिहास के कई अनछुए आयामों तक हमें ले जाते हैं। उन्होंने एक जरूरी बात यह कही है कि मनुष्य सृष्टि का सर्वश्रेष्ठ प्राणी नहीं है, यह उसका एक स्वयंभू ख्याल है और खुद को सर्वश्रेष्‍ठ मानते हुए मनुष्य ने प्रकृति का अतार्किक, अनुचित और अनैतिक दोहन किया है। हरारी के इस ख़याल को सीरीज अपनी तरह से नाटकीय रूप देती है। कहना चाहिए कि आनंद गांधी का दर्शन प्रेम यहां मुखर होता है।

कानी कसरुती

पूजा शेट्टी और नील पेगेडर द्वारा निर्देशित 6 एपिसोड की यह सीरीज स्वचालित कार से हुई मृत्यु का रहस्य बुनती है। उसके इन्वेस्टिगेशन की टीम है : विजय वर्मा, राधिका आप्टे और कानी कसरुती आदि। मलयाली जूनियर कॉप के रूप में कानी कसरुती दरअसल श्‍यामल अभिनेत्रियों में भारत की नई चमकदार प्रतिनिधि है। शायद यह हिंदी में उनका पहला ही बड़ा काम हो, दक्षिण में वह जाना-पहचाना चेहरा और नाम है। जैकी श्रॉफ छोटी सी शैतानी भूमिका में हैं।

वहीं छोटी-छोटी भूमिकाओं में रत्नाबली भट्टाचार्या और रसिका दुग्गल की उपस्थितियां सार्थक हैं। कातिल रोबोट के किरदार का नामकरण ‘अजीब’ बड़ा रोचक है।

यक़ीन करने लायक भविष्य को क्रिएट कर देना सीरीज़ की खासियत है।  निर्माता के रूप में आनंद गांधी का दावा है कि यह भारत की पहली साई-फाई कॉमेडी है, मेरी राय है कि अपने जॉनर का विश्‍वसनीय और महत्‍वपूर्ण काम तो उन्‍होंने कर ही दिया है।

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