मैं स्वाति, अपने घर में सबसे छोटी, सबसे लाड़ली ☺️
जब मेरी शादी हुई और मैं माँ बनी… तो वह एक बहुत खूबसूरत एहसास था मेरे जीवन का…
जब उस छोटे से बच्चे के नन्हें-नन्हें हाथ मेरे हाथ में आये, उस छोटे से बच्चे को मैंने अपनी गोद में उठाया तो उस वक़्त मैं अपने सारे दर्द भूल गई…
जैसे-जैसे वक़्त बीतता गया वैसे-वैसे यह एहसास होता गया कि यह सफर जितना आसान लगता है, उतना होता नहीं… और आज के दौर में जहाँ वर्किंग वुमन हो, और न्यूक्लियर फैमिली हो, तो थोड़ी मुश्किलें बढ़ जातीं हैं.
ओह! बातों-बातों में मैं तो अपने नटखट का नाम बताना ही भूल गई… मेरे नन्हें से नटखट का नाम “आहान” है, जिसका अर्थ है – “भोर” और यह नाम कृष्ण भगवान का भी है.☺️ जैसे कृष्ण जी बचपन में बहुत नटखट थे, मेरा डेढ़ साल का नन्हा भी बहुत नटखट है.
As a teacher, मैं अपनी क्लास में कोई 40-50 बच्चों को संभाल लेती थी, लेकिन मेरा यह नटखट आहान अकेले मेरे छक्के छुड़ा देता है. वैसे नॉर्मली इनका शेड्यूल अलग होता है, लेकिन अभी लॉकडाउन टाइम में, बाहर जाना बिलकुल मना है न. तो हम पूरी कोशिश करते हैं कि इसका असर उनकी ग्रोथ पर न पड़े. इसके लिए हम कुछ अलग करते हैं… जैसे खेलना-कूदना, चलना-फिरना, और भी बहुत कुछ.
इनके दिन की शुरुआत म्यूजिक से होती है, आहान को डांस करना बहुत पसंद है. वो किसी भी आवाज़ या बिना आवाज़ के भी डांस कर सकते हैं, पर उनका फेवरेट सांग है, “बाला बाला शैतान का साला…”
उसके बाद उनका नाश्ते का टाइम. नाश्ता करने के बाद आहान ड्राइव पर जाते हैं अपनी छोटी सी कार में. एक कमरे से दूसरे कमरे में. और मौका मिला तो बालकनी में भी चले जाते हैं. मैं एक 2Bhk flat में रहती हूँ. मैंने अपने सभी रूम के नाम भी रखे हैं. जैसे हॉल का सिविल लाइन्स, बेड रूम का मुट्ठीगंज, दूसरे रूम का कंपनी गार्डन और बालकनी का संगम.
आहान अपनी कार चला के जब थक जाते हैं तो हम उनके साथ बॉल खेलते हैं जिससे उनमें एनर्जी बनी रहे. हम आहान के साथ दिनभर मस्ती करते हैं, कभी डांस, तो कभी कार रेसिंग. कभी कलर करना बताते हैं, तो कभी उनको पोयम्स का वीडियो दिखाते हैं TV पर, तो कभी अपनी सुरीली आवाज़ से उनको एंटरटेन करते हैं. हमने उनके लिए घर में ही टेंट भी बनाया है. उसमें हम उनके साथ मिलकर खेलते हैं. जिससे आहान को कुछ डिफरेंट लगे.
वो अपने टॉयज से बोर हो गए तो इसके लिए भी हमने कुछ तोड़ निकाला है. जैसे हम उनके सारे टॉयज उनको एकसाथ नहीं देते हैं. थोड़े-थोड़े टॉयज और रोज़ चेंज कर के देते हैं. इससे उनको हर बार कुछ नया सा लगता है.
हम उनके साथ बाते करते हैं, उनको बोलना सिखाते हैं, कभी हम उनके साथ बैट-बॉल खेलते हैं तो कभी कुछ भी नहीं करते… मेरा मतलब है कि हम ऑब्सर्व करते हैं कि वो कैसा फील कर रहे होंगे इस लॉकडाउन में… घर के अंदर!
ऐसे ही हम उनके साथ खेल-खेल में पूरे एन्जॉयमेंट के साथ सारा दिन बिताते हैं.