13 मार्च को हम जयपुर से मुंबई पहुंचे थे। उस दिन मेरा जन्मदिन भी था। मेरे बेटे विराज और पति दुष्यंत ने मेरे लिए सरप्राइस प्लान किया था। शाम को हम लोग घूमने भी गए थे, हालांकि हमने मास्क लगाया हुआ था, पर बाकी लोग लापरवाही से ऐसे ही घूम रहे थे। कोरोना से बचाव के लिए जगह-जगह पोस्टर लगे थे लेकिन कोरोना को लेकर कोई सावधान, जागरूक नहीं था। फिर लॉक डाउन हो गया और हम तीनों मुंबई के मड आईलैंड में अपने घर में कैद हो गए। बेटा विराज मुंबई में अपनी छुट्टियां बिताने के इरादे से आया था, पर यहां वो कैद हो गया था।
काम के सिलसिले में मुझे और मेरे पति को अक्सर ट्रैवल करना पड़ता है तो यह पहला मौका है, जब मार्च से हम लगातार साथ हैं। यह बड़ा मुश्किल समय है, खासकर बच्चों के लिए क्योंकि वे स्कूल नहीं जा पा रहे हैं, अपने दोस्तों के साथ नहीं खेल पा रहे हैं और एक आम जिंदगी नहीं जी पा रहे हैं।
ऐसे में मां होने के नाते मेरी जिम्मेदारी बहुत बढ़ गई। मेरी हर वक्त एक ही कोशिश रहती कि 12 साल का बेटा विराज किसी भी तरह की बोरियत, तनाव, अवसाद या अकेलेपन का शिकार ना हो। मैंने उसको इस लॉकडाउन में बहुत सारी चीजें पकाना यानी कुकिंग सिखाई। घर के अन्य कामों में भी उसने पूरा सपोर्ट किया। सैनिटाइजेशन की जिम्मेदारी उसके नाजुक कंधों पर ही है। मेरा बेटा शुरू से ही अपनी उम्र से ज्यादा समझदार और संवेदनशील है। उसको डांटने-मारने की जरूरत कभी महसूस नहीं हुई क्योंकि वह इशारे से ही बात समझ जाता है। पढ़ाने के साथ-साथ उसके साथ लूडो, ताश, कैरम, चैस, फुटबॉल, बैडमिंटन और ना जाने क्या-क्या खेल खेले। कई बार मैं उसका छोटा भाई “आदी”, जोकि एक वर्चुअल भाई है, बन जाती हूं। हम पूरे दिन मजे करते हैं, खूब हंसते हैं।
हम लोग 3 मई को मुंबई से जयपुर लौट आए। घर पर 14 दिन हमें होम क्वारांटीन किया गया। इस दौरान हमने अपनी वे सारी इच्छाएं पूरी करीं जो पिछले कई सालों से वक्त ना मिल पाने के कारण अधूरी पड़ी हुई थीं। हमने लॉकडाउन में गार्डनिंग पर फोकस किया और छत पर टैरेस गार्डन बनाया, जहां शाम को हम सब मिलकर बैठते हैं – म्यूजिक सुनते हैं, बातें करते हैं। रात में सोने से पहले हम तीनों मिलकर कहानियां बनाते हैं और एक-दूसरे को सुनाते हैं।
लॉक डाउन के दौरान मैंने विराज को रोज एक फिल्म देखने की इजाजत दी ताकि वह वर्ल्ड सिनेमा को समझ सके और साथ ही साथ रोज एक किताब का कुछ हिस्सा पढ़ने, हैंड राइटिंग सुधारने और 25 तक के पहाड़े याद करने की आदत डलवाई।
नई-नई क्रिएटिव चीजें बनाने पर ध्यान दिया। Tribal पेंटिंग की, क्राफ्ट के आइटम बनाए, पुराने सामान से डेकोरेटिव आईटम्स बनाए। मैं विराज के साथ मॉर्निंग वॉक पर भी जाती हूं तब उसे पेड़-पौधे और पक्षियों के बारे में जानकारी देती हूं ताकि उसकी जनरल नॉलेज बढ़े, वो कुदरत से वाक़िफ हो सके। विराज को फोटोग्राफी का शौक है तो मैंने उसे कैमरे की बारीकियां समझाईं और दिन में एक से डेढ़ घंटा वह कैमरे की आंख से देखते हुए अच्छे-अच्छे फोटोग्राफ्स खींचता है।
लॉक डाउन में ही उसका जन्मदिन पड़ा, जिसके लिए हमने घर पर केक बनाया और हर मायने में उसके लिए ये दिन ख़ास बनाने की कोशिश की।
इस तरह लॉक डाउन का यह समय हमने पूरी तरह क्रिएटिव एक्टिविटी में बिताया। मैंने इस दौरान अपना लिखना बहुत कम किया क्योंकि मेरा सारा फोकस अपने बच्चों पर है। जी हां, विराज के अलावा मेरे दो बच्चे और हैं – एक, मेरे पिताजी जो अब ओल्ड हैं और डायबिटीज होने के बावजूद उन्हें हर समय मीठा चाहिए, उनसे जूझना और मांगें पूरी करना भी बड़ा मुश्किल काम है। दूसरा बच्चा, पिकोलो यानी हमारा पालतू डॉग। यह एक Cane Corso है, जो काफ़ी बड़ा और बहुत ही समझदार है। इसके साथ पूरे समय मस्ती करना, खेलना-कूदना, बातें करना तो लॉकडाउन में बहुत सारा समय होते हुए भी मैंने अपने काम को समय नहीं दिया और इस समय को अपने बच्चों की देखभाल में लगा दिया।
इस समय हमारे घर के क्रिसमस ट्री पर एक बुलबुल के जोड़े ने घोंसला बनाया और तीन अंडे दिए, जिनमें अब बच्चे निकल आए हैं।
इस तरह मेरा परिवार मिलजुल कर सकारात्मक रहते हुए एक अच्छा समय बिता रहा है और यह समय जल्द गुज़र जाएगा ऐसी उम्मीद रखे हुए है।
यह कोरोना काल हम सबकी जिंदगी का एक अजीब और मुश्किल समय है लेकिन मुझे लगता है कि अगर सब मिलकर प्यार से पॉजिटिव रहते हुए इस वक्त का सामना करें तो काफी हद तक तनाव कम होगा।
लॉकडाउन खत्म होने के बाद जब सब कुछ नॉर्मल होगा और विराज स्कूल जाने लगेगा, तब मैं अपने काम पर फोकस कर पाऊंगी। अभी मैं उसके साथ यह कीमती समय इंजॉय कर रही हूं क्योंकि पहले हम कभी इतना वक्त साथ नहीं रहे और शायद सब सामान्य हो जाने पर इतना वक़्त निकाल पाना मुश्किल होगा।
इस वक़्त को मैंने पूरी तरह विराज की मम्मा, दोस्त, टीचर और भाई बन कर जिया है।