Image default

प्रेम की अनजान, अजीब, अटपटी गलियां

अमेज़ॉन प्राइम पर फिक्‍शन सिरीज मॉडर्न लव का दूसरा सीजन कुछ समय पहले आया है। प्रेम कहानियों में प्रेमी प्रेमिका के साधारण या असाधारण मिलन, शादी में कोई भीतरी या बाहरी संघर्ष और उसका रिजोल्‍यूशन, हैप्‍पी एंडिंग के स्‍टीरियो टाइप को ध्‍वस्‍त करती है यह वेबसिरीज।

एक शहर में घटित होते प्रेम के कई आयाम मॉडर्न लव की कथावस्तु है। शहर है न्यू यॉर्क। वहां के प्रमुख अखबार में छपे साप्‍ताहिक कॉलम का पहले पॉडकास्‍ट रूप बना और फिर यह नया रूपांतरण। वेबसिरीज के हर सीजन में 8 यानी कुल 16 एपिसोड हैं। हर एपिसोड में अलग कहानी है। जॉन कार्नी इसके निर्देशक हैं।

प्रेम को सांचे में देखना हमारी आदत बन गई है, वे भी अपने आप या कुदरती नहीं है, दरअसल बनाए गए हैं। पीढ़ी दर पीढ़ी, कहानी-दर-कहानी। जब भी किसी अनदेखे-अनसुने फॉरमैट में प्रेम दिखाई देता है, बहुत बार तो हम बहुत लंबे समय तक प्रेम ही नहीं मान रहे होते, कहीं और ही रख रहे होते हैं। ‘मॉडर्न लव’ हमारे कई सांचे लोड़ता है, भीषण तोड़फोड़ करता है, कई सांचों पर सवाल उठाता है। प्रेम का सबसे प्राचीन साँचा शायद स्त्री-पुरूष का यौनिकता से संयुक्त जुड़ाव है। यह बेसिक भी अब कहाँ बेसिक बचा है ! प्रेमगीत फ़िल्म के एक गीत में जगजीत सिंह गा के गए हैं- ‘ना उम्र की सीमा हो, ना जन्म का हो बंधन, जब प्यार करे कोई तो देखे केवल मन।’ गीतकार थे – इंदीवर। इस गीत को ठीक 30 साल बाद आई इस वेबसिरीज का थीम सॉन्ग कहा जा सकता है, इस गीत के ख़याल को थीम सॉन्ग बनाया भी जा सकता था। हालांकि हर एपिसोड अलग गीत के साथ खत्म होता है, यह भी अद्भुत और सुंदर प्रयोग है जो भारत की किसी वेबसिरीज में अब तक मुझे दिखाई नहीं दिया है।

जॉन कार्नी

ऐसा ही खयाल गायक गुरदास मान का एक पंजाबी गीत देता है –

                 ‘नींद न वेखे बिस्‍तरा,

                 ते भुख न वेखे मास,

                 मौत ना वेखे उमर नूं,

                 इश्‍क न वेखे जात।’

आदम और हव्वा से किसी रूप में प्रेम की शुरुआत मान लें, तो प्रेम ने इतने रूप धरे हैं कि अब तो किसी एक रूप को सर्वमान्य कहना अनुभवजनित खूबसूरत बेवकूफी मानी जानी चाहिए।

कहीं पढ़ा था कि सर्वथा नि:स्वार्थ प्रेम करना तो मानव सभ्यता ने अभी सीखा ही नहीं है। शायद इसे ही भारतीय परंपरा में अहेतुक प्रेम कहा गया होगा।

अधिकांश भारतीय या हिंदी सिनेमा प्रेम कहानियों का सिनेमा रहा है, कभी एक फ़िल्म क्रिटिक ने कहा था कि हर साल भारत में हज़ार फ़िल्में बनती हैं तो 50 तो रोमियो जूलियट के ही संस्करण बनते ही हैं। यहां 50 की संख्या रेटोरिक में कह दी गयी हो तो भी रोमियो जूलियट की प्रेम कथा से प्रेरित फिल्मों की संख्या कोई कम नहीं होगी, नया स्टार/ प्रड्यूसर पुत्र लांच करने का तो यह हिट फार्मूला ही बन गया कि दो परिवारों की पुरानी दुश्मनी है, उन परिवारों के लड़के-लड़की प्रेम करने लग गए, रेडीमेड कॉन्फ्लिक्ट भी है, रोमांच भी। ख़ाकसार ने भी इस कथा पर हाथ आजमाया, जग्गरनॉट के लिए ‘वाया गुड़गांव’ उपन्यास लिखा।

बहरहाल, प्रेम के कितने आयाम हो सकते हैं, वे सीमित रूप में ही बड़े पर्दे पर आ पाते हैं, श्रीदेवी-अनिल कपूर की फ़िल्म ‘लम्हे’ फ़िल्म को याद कीजिए। फिल्‍म के लेखक थे : हनी ईरानी और डॉ राही मासूम रजा। निर्देशक यश चोपड़ा साहब ने बड़ा जोखिम लिया था, भारतीय समाज में अपाच्य कथा चुनी, नायक की शादी नायिका से नहीं हो पाती, फिर नायिका की बेटी नायक से टकराती है, नायक समान चेहरे से आकर्षित होता है और प्रेम कहानी शुरू होती है। नायिका और बेटी दोनों भूमिकाओं में श्रीदेवी थीं। यह ऑफ बीट लव स्‍टोरी वाली फिल्म भारत से ज्‍यादा ओवरसीज मार्केट में सफल रही।

लेखकों-कवियों-कलाकारों ने मिथ फैलाया कि प्रेम जीवन में एक ही बार होता है। पहला प्रेम शादी में न बदले तो जीवन समाप्त कर लो या आजीवन कुंवारे रहो!  इस मिथ को टूटने में वक़्त लगा। अब मूल्य बदल गए हैं फिर से प्रेम हो सकता है, प्रेम जीवन का बहुत बड़ा मूल्य है, पर जीवन प्रेम से बड़ा है।

हिंदी सिनेमा की प्रेम‍ कहानियों को ‘प्रेम एक ही बार होता है’ के खयाल से ‘तू किसी और का है फिलहाल, कुछ ऐसा कर दे कमाल के तेरा हो जाऊं’ तक आते-आते मानसिक स्‍तर पर युगों की यात्रा करनी पड़ी है।

याद आ रहा है कि इससे जुड़ा क्या ही विचित्र  संयोग रहा कि लैला मजनूं, हीर रांझा, शीरीं फरहाद, सस्‍सी पुन्‍नू जैसी तमाम महान प्रेम कथाएं अधूरी प्रेम कहानियां ही थीं। एक ही जीवन को किसी अधूरे प्रेम का शोकगीत बनाकर गाते रहने का मूल्‍य हमारी सदी में किताबी मान लिया गया है, उसे जीनेवाले को पागल या बेवकूफ ही कहा जाता है।

‘मॉडर्न लव’ की कुछ कहानियों की बात करें, एक कहानी में नाती-पोतों वाला नायक बेटी से छोटी उम्र की लड़की के प्रति प्रेम महसूस करता है, पर नायिका उसमें अपना खोया पिता ही खोजती है। एक कहानी गे जोड़े द्वारा गर्भवती सिंगल मदर के होने वाले बच्चे से पितृसुख की कामना की अद्भुत दास्तान भी है। प्रेम के त्रिकोणों, चतुष्कोणों की तो कई दिलचस्प कहानियां हैं। किन-किन असंभाव्य, अकल्पनीय और अविश्वसनीय स्थितियों में प्रेम का अंकुरण हो सकता है, यह देखना भी इस सिरीज में दिलचस्प है। यहां तक कि आत्मप्रेम और प्लेटोनिक प्रेम की कहानियां तो और भी संवेदनापरक हैं। प्रेम कहानियों में प्रेमी-प्रेमिका के साधारण या असाधारण मिलन, शादी में कोई भीतरी या बाहरी संघर्ष और उसका रिजोल्‍यूशन, हैप्‍पी एंडिंग के स्‍टीरियो टाइप को ध्‍वस्‍त करती है यह वेबसिरीज।

स्टोरीटेलिंग के लिहाज से पहले सब प्रेम कहानियां हैप्पी एंडिंग की कहानियां होती थीं, अब पिछले कुछ दशकों से बदलाव यह आया है कि प्रेम की हैप्पी एंडिंग से कहानी शुरू भी हो सकती है, वह मध्यांतर भी हो सकता है और प्री-क्लाइमेक्स भी। और प्रेम की हैप्पी एंडिंग यह भी हो सकती है, नायक-नायिका का आखिरकार साथ न होना दोनों के जीवन के लिए हैप्पी नोट हो।

प्रेम के आयामों को देखते हुए चौंकने और खुद को ग्रो करने की मंशा वाले दर्शक तो इस सिरीज को देख ही सकते हैं, अपने ज़हनों में मानवीयता के विस्तार के लिए भी इसे देखा जाना चाहिए। रोम-कॉम के जॉनरा में रुचि रखने वालों को तो इसे मिस करने के बारे में सोचना ही नहीं चाहिए।

पसंद आया तो कीजिए लाइक और शेयर!

आप इसे भी पढ़ना पसंद करेंगे

राजाओं की तरह जीने वाली रानी की कहानी

Dr. Dushyant

साइंस का नोबेल मिलता है, धर्म ठुकरा देता है

Dr. Dushyant

हव्वा की बेटी का रोज़नामचा

Dr. Dushyant

कहीं एक मासूम नाज़ुक सी लड़की

Dr. Dushyant

चार नेशनल अवॉर्ड विनर बंगाली फ़िल्म ‘जातीश्वर’ का हिंदी रीमेक ‘है ये वो आतिश गालिब’ | Bangla Movie in Hindi as Hai Ye Vo Aatish Ghalib

Dr. Dushyant

गांव रुमाल क्यों हिलाता है ?

Dr. Dushyant